नशाबंदी—यह शब्द सुनते ही मन में एक आदर्शवादी कल्पना उभरती है, जैसे समाज को नशे के अंधकार से मुक्त करने की कोई दृढ़, ईमानदार और दूरगामी योजना चल रही हो। लेकिन वास्तविकता इसके बिल्कुल उलट है। नशा उन्मूलन की बातें अक्सर सिर्फ भाषणों, पोस्टरों और एक-दो दिवस मनाने तक सीमित रह जाती हैं, जबकि दूसरी ओर सरकारें शराब, भांग, गुटखा, जर्दा, सुर्ती, बीड़ी और सिगरेट बेचने के लिए बाकायदा लाइसेंस जारी करती हैं। यह विरोधाभास केवल नीति का नहीं, बल्कि समाज के भविष्य के साथ किया जा रहा सीधा छल है।
सिगरेट के पैकेट पर "सिगरेट पीना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है" लिख देना या गुटखे पर कर्करोग का भयानक चित्र छाप देना सिर्फ एक औपचारिकता बनकर रह गया है। यह वैसा ही है जैसे किसी जहर की शीशी पर खतरे का चिन्ह बनाकर उसे खुले बाजार में उपलब्ध करा देना ताकि लोग खरीदें, खाएं, बीमार पड़ें, मरें; लेकिन राजस्व का पहिया चलता रहे। राजस्व की लालसा ने मानव स्वास्थ्य और युवा पीढ़ी के भविष्य को हाशिए पर धकेल दिया है।
शराब और अन्य मादक पदार्थों से होने वाली सामाजिक और पारिवारिक तबाही किसी से छिपी नहीं है। सड़क दुर्घटनाओं से लेकर घरेलू हिंसा, अपराध, तनाव, अवसाद, अकाल मृत्यु और युवाओं के शारीरिक-मानसिक पतन तक, नशा आज एक सर्वव्यापी संकट बन चुका है। विडंबना यह है कि सरकारें इस संकट को 'नियंत्रित व्यापार' कहकर वैधता देती हैं और फिर साल में एक दिन नशा उन्मूलन दिवस मना कर जैसे अपनी जिम्मेदारी की इतिश्री कर लेती हैं।
यह दोहरा चरित्र जितना खतरनाक है, उतना ही समाज के प्रति अन्याय भी। यदि वास्तव में नशामुक्त समाज का सपना देखा जा रहा है, तो फिर राजस्व के नाम पर जहरीले उत्पादों का सरकारी संरक्षण क्यों? जब किसी चीज़ को हानिकारक स्वीकार किया चुका है, तो उसके व्यापार को सरकारी अनुमति देना नैतिक व सामाजिक स्तर पर कैसे उचित ठहराया जा सकता है?
सरकार को अपनी नीतियों के इस विरोधाभास को समझना होगा। यदि नशा उन्मूलन की दिशा में सचमुच कदम उठाने हैं, तो नशाधारित राजस्व पर निर्भरता को कम करने के विकल्प तलाशने होंगे। साथ ही, शराब और तंबाकू जैसे पदार्थों को जीवनशैली का हिस्सा बनाने वाली विज्ञापनबाज़ी पर कड़े प्रतिबंध, युवाओं के लिए नशा-मुक्ति अभियान, स्कूल-कॉलेज स्तर पर जागरूकता और सबसे बढ़कर लाइसेंस निर्गमन की नीति का पुनर्विचार अनिवार्य है।
जब तक सरकार अपनी प्राथमिकताओं में राजस्व की जगह जन-स्वास्थ्य को नहीं रखेगी, तब तक हर साल मनाया जाने वाला नशा उन्मूलन दिवस केवल एक औपचारिकता ही रहेगा। समय आ गया है कि सरकारें नीतियों को खोखली घोषणाओं से निकालकर वास्तविक संवेदनशीलता और जिम्मेदारी के साथ लागू करें, वरना युवा पीढ़ी की बर्बादी पर खड़ा यह आर्थिक ढांचा एक दिन समाज की नींव को ही कमजोर कर देगा।
