रूद्र चंडी महायज्ञ एवं शिव महापुराण कथा का आयोजन संपन्न हुआ

कोपागंज क्षेत्र के पुराने कोपा ग्राम सभा के भौराहव महादेव के मंदिर में आयोजित रूद्र चंडी महायज्ञ एवं शिव महापुराण कथा का आयोजन किया गया जिसमें चतुर्थ दिवस व्यास अभिषेक जी महाराज ने - सती वियोग" के बारे में बताते हुए बताया कि "शिव सती का वियोग समय निकट आ गया था"

ये मात्र सिर्फ दो शरीरों का वियोग नही था बल्कि ऐसा लग रहा था जैसे सूर्य से उसका तेज़, हवा से उसका वेग, चांद से उसकी चांदनी, समुद्र से उसकी गहराई, पर्वत से उसकी ऊँचाई, अग्नि से उसकी तपन का वियोग हो रहा था।

शिव अपने हाथों में सती के शरीर को पकड़े हुए थे, वो इस शरीर को छोड़ना नही चाहते थे। सती की हर एक दर्द भरी आह शिव के हृदय में हज़ारों घावों को उत्पन्न करती और उन्हें बार बार उस कटु क्षण का स्मरण कराती जब वो सती की रक्षा नही कर सके, ये बात उनके मन को कचोट रही थी लेकिन समय के चक्र के सामने ईश्वर की शक्ति भी क्षीण हो जाती है, अब शिव के सामने था सिर्फ सती से वियोग का महान दुःख और पीड़ा।



इस दुःख और पीड़ा के गहरे समुद्र में शिव लगातार डूबते जा रहे थे, वो इतनी गहराई में जा चुके थे कि उम्मीद की सूर्य रूपी किरण भी उन तक नही पहुँच पा रही।

सती भी अपना शरीर ज़िंदगी भर शिव के हाथों में ही रखना चाहती थी, सती को वो सारे मधुर क्षण स्मरण हो रहे थे जो उसने शिव के साथ बिताए थे।

उसका हृदय भी शिव के वियोग से रो रहा था, वो शिव में स्वयं को समाहित करना चाहती थी लेकिन ये अब सम्भव नही था, उसका अंतिम समय आ गया था, वो अब सिर्फ शिव की स्मृतियों को अपने अंतर्मन के किसी कोने में हमेशा के लिए बसा लेना चाहती थी।

शिव स्वयं को इसके लिए दोषी मान रहे थे, क्रोध के मारे उनका शरीर वियोग की गहन अग्नि में जल रहा था, इस शरीर को शीतल करने का एकमात्र साधन थी - सती, जो अब धीरे धीरे उनसे दूर हो रही थी, शिव भी सती रूपी शीतलता के साथ जीवन व्यतीत करना चाहते थे लेकिन अब वो शीतलता स्वयं ही अनन्त काल के लिए शीतल हो रही...! इसी क्रम उज्जैन से पधारे ब्राह्मण श्री रूद्र चंडी महायज्ञ का कार्यक्रम भी जारी रहा जिसमें मुख्य अतिथि के रूप में जिला पंचायत अध्यक्ष श्री मनोज राय जी एवं सहयोगी नरेंद्र राय, संतोष त्रिपाठी, रूद्र दत त्रिपाठी ,अशोक श्रीवास्तव, साथ ही सैकड़ों की जनसंख्या उपस्थित रहे