कोपागंज, मऊ। गौशालाओं के सही रखरखाव के संबंध में राज्य सरकार के तमाम निर्देशों के बावजूद जनपद में गौशालाओं की स्थिति बद से बदतर होती जा रही है और जानवरों की दुर्दशा विभत्सता के पैमानों पर दिन प्रतिदिन ऊपर चढ़ती जा रही है। कुछ ऐसा ही देखने को मिला जब विकासखंड कोपागंज अंतर्गत स्थित ग्राम लैरो बेरुआर में बनी गौशाला में सोमवार सुबह एक मृत गाय की लाश को, चार-पांच कुत्ते नोच कर खाते हुए नजर आए। दुर्दशा की पराकाष्ठा तब हो गई जब यह पता चला कि वह गाय गर्भवती थी और कुत्ते उसके पेट से खींच कर भ्रूण को भी नोच नोच कर खा रहे थे। यह नजारा देख, उपस्थित सभी लोग अंदर तक कांप गए। बार-बार लोगों का यही प्रश्न कौंधता रहा कि पशु की इस दुर्दशा का जिम्मेदार कौन है?
विकासखंड कोपागंज अंतर्गत स्थित गौशालाओं में पशुओं की मृत्यु का समाचार नया नहीं है। अभी बीती 24 जनवरी को ही विकासखंड अंतर्गत स्थित ग्राम एकौना में बनी गौशाला में पांच गायें मृत पाई गईं थी। और आज जब सुबह लोगों ने विकासखंड के ग्राम लैरो बेरुआर में बनी गौशाला के भीतर मृत गाय के शव को चार-पांच कुत्तों द्वारा नोच कर खाए जाने का वीभत्स दृश्य देखा तो अनायास ही सबके मन उद्वेलित हो गए। जब लोगों ने देखा कि गाय गर्भवती भी थी और कुत्ते गर्भ से शिशु को खींच कर खा रहे हैं तो इस दृश्य ने वहां उपस्थित सभी को अंदर तक झकझोर दिया। उपस्थित सभी ग्रामीणों का कहना था कि यह सब ग्राम पंचायत और उच्चाधिकारियों की लापरवाही का नतीजा है।
गौशालाओं की दुर्दशा किसी से छिपी हुई नहीं है। गौशालाओं में जहां पशुओं के लिए चारे पानी का भी अभाव है। वहीं उनके लिए स्वास्थ्य सुविधाएं भी समय से उपलब्ध नहीं हो पाती। जब गौशाला के भीतर स्थित नाद देखी गयी तो उसने दाना पानी भी नहीं था। लोगों के पहुंचने के बाद तो नाद में दो बोरी भूसा ला कर डाला गया। चारे पानी के अभाव में ज्यादातर पशु मृतप्राय हो चुके हैं।
लेकिन इसके लिए मात्र ग्राम पंचायत को ही जिम्मेदार ठहराना उचित नहीं होगा। बार-बार पशुओं की मृत्यु और गौशालाओं में पशुओं की स्थिति के संबंध में आ रही खबरों के बावजूद, विकासखंड से लेकर तहसील और जनपद स्तर तक के उच्चाधिकारी निष्क्रिय बैठे रहते हैं। जब तक राज्य सरकार की तरफ से गौशालाओं के संबंध में कोई नया निर्देश या सर्कुलर नहीं जारी होता, तब तक किसी का ध्यान इन गौशालाओं में पड़े पशुओं की तरफ नहीं जाता है। कुछ ग्रामीण दबे मुंह से यह भी कहते सुने गए कि इन पशुओं की इस दुर्दशा भरी मृत्यु से, इनका किसी के मुंह का निवाला बनना ज्यादा बेहतर था।
Reporter- मधुसूदन तिवारी कोपागंज

