*जरा सोचिए हम शिकार बन रहे हैं।*
*बडी मुश्किल घड़ी है ये भारत के लिए* .......
*आने वाला कल (जरूर पढ़े)*
वर्तमान समय में भारत में आन लाइन व्यवसाय और भुगतान/ लेन-देन बहुत तेजी से बढ रहा है जिसका बहुत बड़ा दुष्परिणाम हमें देखने को मिल सकता है।
इस आनलाइन व्यवसाय में घर पर ही सभी वस्तुएँ उपलब्ध हो जाती हैं जिससे घर से निकलने का अवसर कम हो जाता है, जो सामाजिक सम्बन्धों के लिए ठीक नहीं है ।
जब हम बैंक जाते हैं या बाजार से सामान खरीदने जाते हैं तो कुछ मित्रों से कुछ अन्य व्यक्तियों से मुलाकात होती है, बात होती है।
वो आदमी जो हर महीने हमारे घर आकर हमारे यूटिलिटी बिल्स ले जाकर ख़ुद से भर आता है, जिसके बदले हम उसे थोड़े बहुत पैसे दे देते हैं, उस आदमी के लिए कमाई का यही एक ज़रिया है।
अगर सारी चीज़ें ऑन लाइन ही हो गई तो मानवता, अपनापन, रिश्ते - नाते सब ख़त्म ही नही हो जाएँगे !
हम हर वस्तु अपने घर पर ही क्यूँ मँगायें ?
हम अपने आपको सिर्फ़ अपने कम्प्यूटर से ही बातें करने में क्यूँ झोंकें ?
हमें उन लोगों को जानने का अवसर मिलता है जिनके साथ हमारा लेन-देन का व्यवहार है, जो कि हमारी निगाहों में सिर्फ़ दुकानदार नहीं होते हैं। इससे हमारे बीच एक रिश्ता, एक बन्धन क़ायम होता है !
क्या ऑनलाइन व्यवसाय करने वाली कम्पनियाँ ये रिश्ते-नाते , प्यार, अपनापन भी दे पाएँगे ?
ये घर बैठे सामान मंगवाने की सुविधा देने वाला व्यापार उन देशों मे फलता फूलता हैं जहां आबादी कम है और श्रमिक काफी मंहगे हैं।
भारत जैसे १२५ करोड़ की आबादी वाले गरीब एंव मध्यम वर्गीय देश मे इन सुविधाओं को बढ़ावा देना आज तो नया होने के कारण अच्छा लग सकता हैं पर इसके दूरगामी प्रभाव बहुत ज्यादा नुकसानदायक होंगे।
देश मे ८०% जो व्यापार छोटे छोटे दुकानदार गली मोहल्लों मे कर रहे हैं वे सब बंद हो जायेंगें और बेरोजगारी अपने चरम सीमा पर पहुंच जायेगी तो अधिकतर व्यापार कुछ गिने चुने लोगों के हाथों मे चला जायेगा हमारी आदते ख़राब और शरीर इतना आलसी हो जायेगा की बहार जाकर कुछ खरीदने का मन ही नहीं करेगा।
जब ज्यादातर धन्धे व् दुकाने ही बंद हो जायेंगी तो मुल्य कहाँ से टकराएँगे तब.....
ये ही कंपनिया जो अभी सस्ता समान दे रही हैं वो ही फिर मनमानी कीमत हमसे वसूल करेंगीं। हमे मजबूर होकर सबकुछ ओनलाइन ही खरीदना पड़ेगा।और ज्यादातर जनता बेकारी की ओर अग्रसर हो जायेगी।
भारत का ऑनलाइन मार्किट है कितना बड़ा?? अंदाज़ लगाया जा सकता है कि कम से कम 10 लाख रुपये प्रति सेकंड सेल है भारत मे ऑनलाइन कम्पनियों की ।
यानी प्रति मिनट 6 करोड़ रुपये मिनट, यानी 360 करोड़ रुपये प्रति घण्टा और एक दिन में लगभग 4 हज़ार करोड़ रुपये
की बिक्री।
एक साल में लगभग 15 लाख करोड़ की सेल जिसका लगभग 50% सिर्फ 2 कम्पनियां कर रही हैं।
ये पैसा पहले मार्किट में आता था,रोटेट होता था पर अब बस ऑनलाइन सेल में ही जा रहा है
ऊपर से तुर्रा ये की ये बिकता इसीलिए है क्योंकि अक्सर ज्यादा सेल वाली चीजों पर सब्सिडी दे रही है ये कम्पनियां, बाजार से दुकानदारों को हटाने के लिए और इसी हिसाब से अगले 5 साल में कर भी देंगी,फिर अपनी मर्जी के रेट ले लेगी,इनके पास अथाह पैसा है ,जिसका सोर्स कोई नही जान सकता ।
हम लोग आने वाले खतरे से अनजान 100 -200- 500 रु की बचत के लालच में अपनी आने वाली पीढ़ियों के भविष्य को दांव पर लगा रहे हैं ।
पिछले दिनों देश में जहां जहां बाढ़ आई हुई थी वहां किसी भी ऑनलाइन कम्पनी ने आवश्यक सामग्री नहीं पहुंचाई , वहां स्थानीय दुकानदार ही काम आए ।
*भविष्य के खतरे को पहचानना होगा और बन्द करना होगा ऑनलाइन खरीददारी।*
- प्रदीप कुमार पाण्डेय
सहादतपुरा, मऊ