मऊ। इतिहास मात्र तथ्य नहीं बल्कि अपने समय की सच्चाई का वर्णन करता है। इसी क्रम में प्रसिद्ध इतिहासकार, अनेकों पुस्तकों के लेखक, उत्तर प्रदेश इतिहास कांग्रेस के संस्थापक सचिव एवं पूर्व अध्यक्ष, इतिहास विभाग दी.द.उ. गोरखपुर विश्वविद्यालय गोरखपुर प्रो.एस.एन.आर. रिज़वी के 75 हीरक वर्ष पर आयोजित "अभिनंदन समारोह एवं "इतिहासकार के कर्तव्य एवं दायित्व: एक विमर्श" विषयक "राष्ट्रीय संवाद" राहुल सांकृत्यायन सृजन पीठ भुजौटी में युवा इतिहासकार गोल्ड मेडलिस्ट (पत्रकारिता) एवं राज्य अध्यापक पुरस्कार प्राप्त उनके शिष्य डॉ.रामविलास भारती द्वारा आयोजित किया गया। जिसमें प्रो. एस.एन.आर. रिज़वी द्वारा लिखित "एक इतिहासकार की आत्मकथा" पुस्तक का विमोचन प्रसिद्ध इतिहासकार प्रो.ओ.पी. श्रीवास्तव, प्रो.मुकुंद शरण त्रिपाठी, प्रो.के.के.पाण्डेय, प्रो.मुहम्मद आरिफ़, प्रो.अशोक सिंह, प्रो.जियाउल्लाह, प्रो.जयप्रकाश धूमकेतु द्वारा किया गया। साथ में प्रो. रिज़वी द्वारा केक काटकर 75 हीरक जन्मोत्सव भी मनाया गया। डॉ. रामविलास भारती ने सभी को स्मृति चिन्ह एवं अंगवस्त्र देकर सम्मानित किया। विषय प्रवेश में सूजन पीठ के निदेशक प्रो. जयप्रकाश धूमकेतु ने कहा कि का प्रो. साहित्य और इतिहास एक दूसरे के पूरक हैं। हर समय के साहित्य का अपना एक बड़ा इतिहास होता है। जिसकी झलक साहित्यिकारों की कृतियों में झलकती है। प्रो. ओ.पी. श्रीवास्तव ने अपने संबोधन में कहा कि तमाम धर्म ग्रंथो में शब्दों की अपनी अपनी तर्क व व्याख्याएं की जाती रही हैं वास्तव में आस्था और इतिहास को अलग-अलग दृष्टि से देखने की जरूरत है हर आस्था इतिहास नहीं हो सकता है।और धर्म की व्याख्याएं इतिहास का हिस्सा नहीं हो सकते बल्कि इतिहास का एक पड़ाव हो सकती है। प्रो. एस.एन.आर. रिज़वी ने कहा मैंने जीवन पर्यंत इतिहास लिखा नहीं बल्कि इतिहास बनाया जिसका जीता जागता उदाहरण एक दलित नामक युवा रामविलास भारती को हमने पी-एच.डी. करवाया जो विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग का पहला पी-एच.डी. दलित एवा बना।जिसका ज्वलंत उदाहरण मेरी जो आज की लोकार्पित पुस्तक "एक इतिहासकार की आत्मकथा" में साफ-साफ दिखाई देता है। इतिहास हमेशा सत्य की कसौटी पर खड़ा उतरना चाहिए। प्रो.रिज़वी ने कहा कि इतिहास प्रमाणिक और मूल श्रोतों पर आधारित होना चाहिए। विद्यार्थी के रूप डॉ. रामविलास भारती से सीख लेने की जरूरत हैं। जिन्होंने अपना सबकुछ समाज के लिए समर्पित कर दिया है।
प्रो. मुकंद शरण त्रिपाठी ने इतिहासकार के कर्तव्य एवं दायित्व का अपने वक्त में बोध कराया। प्रो.के.के. पाण्डेय ने कहा कि इतिहास को सच की तरह सच लिखने व तथ्यों पर आधारित लिखने का दायित्व बताया। प्रो.अशोक सिंह इतिहास पर आने वाले खतरों का एहसास कराया। प्रो.जियाउल्लाह ने कहा कि इतिहास को इतिहास की दृष्टि से देखने की जरूरत है, न कि कहानी के रूप में। अंत में डॉ. रामविलास भारती ने सभी इतिहासविदों एवं अपने गुरु प्रो.रिज़वी के प्रति आभार व्यक्त किया। कार्यक्रम का संचालन बृजेश यादव ने किया। इस अवसर पर डॉ. आलोक रंजन डॉ.गोपेश त्रिपाठी, डॉ.रामप्रताप यादव, राघवेंद्र, अरविंद मूर्ति, मुखराम, लोकतंत्र सेनानी राम अवध राव, डॉ.तेजभान, मुन्नू राम, मिशन गायक तारकेश्वर राव टंडन, सत्यम कुमार, राम भवन प्रसाद, कुंवर रानू कुमार गौतम, डॉ.पवन, डॉ. मयंक, ओम प्रकाश रंजन, नीरज, अजय कुमार, रानू गौतम, बदामी, पूजा, धीरज, अंजली, साधना, रवीना, कुसुम, अनीषा, संतोष कुमार, प्रज्ञात आदि उपस्थित रहे।
