तहसीलदार धर्मेंद्र कुमार पाण्डेय बने संकटमोचक, निलंबित लेखपाल के वरासत प्रकरण ने खोली तहसील की पोल

बंद कमरे में चला मैराथन: लेखपालों का धरना खत्म, पर सवाल अब भी जिंदा!

तहसीलदार धर्मेंद्र कुमार पाण्डेय बने संकटमोचक, निलंबित लेखपाल के वरासत प्रकरण ने खोली तहसील की पोल

घोसी (मऊ): घोसी तहसील में


चला बंद कमरे का मैराथन आखिरकार तहसीलदार धर्मेंद्र कुमार पाण्डेय की पहल से थमा। जिले में लगे धारा 144 के बाद भी धरने पर बैठे लेखपालों ने तहसीलदार की मध्यस्थता के बाद धरना समाप्त कर दिया।

दरअसल धरने की वजह बना था लेखपाल दिनेश चौहान का निलंबन। एसडीएम अशोक कुमार सिंह ने चौहान को रिश्वतखोरी के आरोप में निलंबित किया था। यह कार्रवाई पूर्व भाजपा जिलाध्यक्ष दुर्गविजय राय की शिकायत पर हुई थी।

लेकिन असली बवंडर तब उठा जब यह सामने आया कि निलंबन होने के बाद लेखपाल ने वरासत दर्ज कर दी!
अब बड़ा सवाल यह है जब कोई कर्मचारी निलंबित है, तो वह सरकारी काम कैसे कर सकता है?

मामला पूर्व भाजपा जिलाध्यक्ष दुर्गविजय राय के परिवार से जुड़ा है।
सूत्रों के मुताबिक, मई माह में दुर्गविजय राय के पिता रविन्द्र नाथ राय का निधन हुआ था, लेकिन पाँच माह बीत जाने के बाद भी उनकी वरासत दर्ज नहीं की गई। जब इसकी शिकायत दुर्गविजय राय ने की तो उपजिलाधिकारी अशोक कुमार सिंह ने लेखपाल दिनेश चौहान को तत्काल  प्रभाव से सस्पेंड कर दिया। आनन फानन में सस्पेंड लेखपाल ने वरासत दर्ज कर दी बड़ी बात ये है कि उसे राजस्व निरीक्षक ने अप्रूव भी कर दिया जिससे विभागीय कार्रवाई पर सवालों के बादल घिर गए हैं।

हालांकि बंद कमरे में चली लंबी बैठक के बाद लेखपालों ने धरना तो खत्म कर दिया, पर तहसील में गूंजता सवाल अब भी वही है —
क्या निलंबन सिर्फ कागज़ी कार्रवाई है? क्या तहसील में रसूख और रिश्वतखोरी का नेटवर्क काम कर रहा है? और क्या आम जनता की फाइलें यूं ही धूल फांकती रहेंगी?

घोसी तहसील में यह मामला अब "सिस्टम बनाम सच्चाई" की जंग का प्रतीक बन चुका है।