आज भारतीय सेना की गौरवशाली परंपरा की बेहद मज़बूत कड़ियों में मजबूती से जाने जाने वाले ब्रिगेडियर मोहम्मद उस्मान साहब का शहादत दिवस है। दुर्भाग्य यह है कि उनकी कुर्बानियों को देश अब लगभग विस्मृत सा कर चुका है।
उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ जनपद वर्तमान में जनपद मऊ के मधुबन तहसील अंतर्गत बीबीपुर गांव 15जुलाई 1912 में जन्मे "उस्मान" भारतीय सैन्य अधिकारियों के उस शुरुआती बैच में शामिल थे, जिनका प्रशिक्षण ब्रिटेन में हुआ। द्वितीय विश्व युद्ध में अपने नेतृत्व के लिए प्रशंसा और कई बार प्रोन्नति हासिल करने वाले ब्रिगेडियर उस्मान साल 1948 में भारत-पाक युद्ध के वक़्त उस10 वीं 50 एवं 77वीं पैरा ब्रिगेड के कमांडर थे, जिन्होंने नौशेरा में अपने जांबाज़ी का लोहा मनवाते हुए ऐतिहासिक जीत हासिल की थी। इसीलिए उन्हें 'नौशेरा का शेर' कहा जाता है।"नौशेरा के शेर" ब्रिगेडियर मोहम्मद उस्मान साहेब के बलिदान पर|कृतज्ञ राष्ट्र सदैव आपका ऋणी रहेगा| तीन जुलाई 1948 में आज के दिन आपने अपने सर्वोच्च बलिदान देकर कबालियोंऔर पाकिस्तान से काश्मीर की रक्षा की थी| शहादत के बाद राजकीय सम्मान के साथ ब्रिगेडियर उस्मान को नईदिल्ली में जामिया मिल्लिया इस्लामिया के क़ब्रगाह में ससम्मान दफनाया गया। उनकी अंतिम यात्रा में देश के तत्कालीन गवर्नर जनरल लॉर्ड माउंटबेटन, प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू, केंद्रीय मंत्री मौलाना अबुल कलाम आज़ाद और शेख अब्दुल्ला जैसे बड़ी बड़ी हस्तियां शामिल थीं।किसी फौजी के लिए आज़ाद भारत का यह सबसे बड़ा सम्मान था। उसके बाद इतना बड़ा सम्मान किसी भारतीय फौजी को नहीं मिला। ब्रिगेडियर उस्मान साहब के पैतृक गांव का आवास उपेक्षा का शिकार बना हुआ है।शासन प्रशासन भी नहीं खोजखबर लेता है। मरणोपरांत उन्हें 'महावीर चक्र' से भी सम्मानित किया गया। शहादत दिवस पर 'नौशेरा के शेर' ब्रिगेडियर मोहम्मद उस्मान को दिल की गहराइयों से खिराज-ए-अक़ीदत