विश्व टीबी दिवस हर साल 24 मार्च को मनाया जाता है। इसका उद्देश्य टीबी को लेकर लोगों को जागरूक करने के साथ ही इसकी रोकथाम करने से है। इसके अलावा, लोगों पर पड़ने वाले इसके खतरनाक प्रभावों, फिर चाहे वो स्वास्थ्य से जुड़े हों या सामाजिक-आर्थिक हों, उनके बारे में जन जागरूकता और समझ को बढ़ाना है। यही वजह है कि 'विश्व टीबी दिवस' के मौके पर जागरूकता अभियान चलाने के साथ ही कई तरह के कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। इसी सिलसिले में आज शारदा नारायन हॉस्पिटल में रोटरी क्लब मऊ की तरफ से एक जनजागरूकता कार्यक्रम का आयोजन किया गया जिसमे रोटरी क्लब मऊ के अध्यक्ष डॉ संजय सिंह ने टीबी से ग्रसित बच्चो को पौष्टिक आहार प्रदान किया और आगे और भी ऐसे बच्चो को गोंद लेने का संकल्प लिया तथा टीबी के बारे में जो भ्रांतिया फैली है उसके बारे में लोगो को अवगत कराया और बताया की टीबी माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरकुलोसिस नामक बैक्टीरिया से होने वाली एक संक्रामक बीमारी है. वैसे तो ये शरीर के किसी भी हिस्से को प्रभावित कर सकती है, लेकिन सबसे ज्यादा टीबी के मामले फेफड़ों के होते हैं. फेफड़े की टीबी संक्रमित व्यक्ति के खांसने और छींकने के दौरान मुंह-नाक से निकलने वाली बारीक बूंदों से फैलती है. इस बीमारी को घातक इसलिए माना जाता है क्योंकि ये शरीर के जिस हिस्से में होती है, उसको बर्बाद कर देती है, इसलिए टीबी का समय पर सही इलाज होना बहुत जरूरी है। लोगों को लगता है कि टीबी की बीमारी केवल फेफड़ों को ही प्रभावित करती है, लेकिन ये पूरा सच नहीं है. दुनिया में करीब 70 फीसदी फेफड़ों की टीबी के मरीज सामने आते हैं, लेकिन ये बीमारी खून के जरिए आपके अन्य अंगों को भी प्रभावित कर सकती है. जब ये फेफड़ों को प्रभावित करती है, तो इसे पल्मोनरी टीबी कहा जाता है और अन्य अंगों को प्रभावित करने पर इसे एक्सट्रा पल्मोनरी टीबी कहा जाता है ,हर टीबी संक्रामक नहीं होती है सिर्फ फेफड़े की टीबी यानी पल्मोनरी टीबी संक्रामक होती है. इसके बैक्टीरिया संक्रमित मरीज के खांसने या छींकने से हवा के जरिए दूसरे के शरीर में प्रवेश कर जाते हैं लेकिन एक्सट्रा पल्मोनरी टीबी, जो शरीर के अन्य हिस्से को प्रभावित करती है, वो संक्रामक नहीं होती है। अक्सर लोग मानते हैं कि टीबी होने पर मृत्यु हो जाती है, लेकिन ऐसा नहीं है आज के समय में टीबी का सफल इलाज मौजूद है बस समय रहते इस बीमारी को पकड़ने की जरूरत है एक बार रोग की पुष्टि हो जाने के बाद विशेषज्ञ इस बीमारी को ठीक करने के लिए छह से नौ महीने का इलाज करते हैं गंभीर स्थिति में ये इलाज 18 से 24 महीने भी चल सकता है अगर समय रहते इसका इलाज करवाया जाए तो इस बीमारी को पूरी तरह से ठीक किया जा सकता है।आगे डॉ सिंह ने बताया की लोग सिर्फ लंबे समय तक आने वाली खांसी को ही इसका प्रमुख लक्षण मानते हैं, लेकिन ऐसा नहीं है. लंबे समय तक खांसी आना इसका प्रारंभिक लक्षण है. इसके अलावा खांसी में बलगम या खून, भूख न लगना, वजन कम होना, सीने में दर्द, हल्का बुखार, रात में पसीना आना भी इसके लक्षण हैं. वहीं एक्सट्रा पल्मोनरी टीबी होने पर प्रभावित हिस्से में तेज दर्द, सूजन या उससे जुड़ी अन्य समस्याएं हो सकती हैं। इस मौके पर डॉ राहुल कुमार, डॉ रुपेश के सिंह,शिवकुमार ,पंकज शर्मा, गौरव मनीष आदि लोग मौजूद रहे।
