एक कदम अच्छाई की ओर..

     
 दूसरे व्यक्तियों में सुधार करने से पहले हमें अपने सुधार की बात पहले सोचनी होगी। दूसरों से मधुर व्यवहार की अपेक्षा रखने से पूर्व हमें स्वयं अपने व्यवहार को मधुर रखना होगा। कई बार हमारा खुद का व्यवहार कितना निम्न और अशोभनीय हो जाता है।
         आजकल दुनिया मे एक बीमारी बहुत तेजी से फेल रही हे । वह हे दुसरो के व्यवहार के नकल करने की...उदाहरणार्थ
   उसने मुझसे बात नही की तो मैने भी नही की।
  उसने मुझे जन्म दिवस की बधाई नही दिया तो मैने भी नही दिया।
  उन्होने मेरे आयोजन में लिफाफे मे ५१ रुपए रखे तो मे भी उतने ही रखुगा।
  उनके घर गए तो चाय पे रवाना कर दिया, अब आने दो उनको मेरे घर!
  उसने उच्च अधिकारी के सामने मुझे ताना मारा, अब आने दो मेरी बारी, मैं भी देख लूगा।
 उसने सबको प्रणाम किया मुझे नही तो मैं आशीर्वाद क्यों दूँ?

    मित्रों यह सुची बहुत लम्बी बनाई जा सकतीं है--
      परन्तु सोचने वाली बात यह है कि सामने वाले ने जो किया वो किया लेकिन हमने क्या किया ??
     हमने सामने वाले के बुरे संस्कार  को नकल करके अपने अच्छे संस्कार को नष्ट कर दिया, जो हममें अच्छाई थी उसको मार दिया केवल ये सोचकर की जैसे को तैसा...... 
   आवश्यकता है हमें अच्छाई की ओर एक कदम बढाने की औरर प्रण करना होगा की हम किसी के बुरे सन्सकारो की नकल नहीं करेंगें चाहे इसके लिये हमें थोडा झुकना ही क्यो न पडे, क्योंकि झुकना ही झुकाना है । एक दिन वह व्यक्ति हमारे अच्छे संस्कारो के आगे झुकेगा और अपने मे बदलाव भी करेगा।
बदला नही लेना किसी से .....,बदल के हमको दिखाना है,अवगुण हम आप क्यों देखे, अच्छे गुण अपनाना है।

                                       प्रदीप कुमार पाण्डेय
                                            सहादतपुरा, म‌ऊ