उत्तर प्रदेश के मऊ जिले का एतिहासिक सूर्य मदिंर का पौराणिक महत्व है । ऐतिहासिक साक्ष्यो और पुराणो के अनुसार जिले के सूर्य मदिंर को बताते है कि यह स्थान देश के बडे पाच सूर्य मदिरो में एक है । त्रेता युग मे भगवान राम नें यहांँ पर सूर्य मदिर की आधारशिला का रखा था । साथ पुराणो मे ंलिखित कथाओ के अनुसार इस मंदिर के बारे मे जानकार बताते है इस मदिरं को पाण्डव युगीन काल का भी बताया जाता है । एतिहासिक साक्ष्यो से इस सूर्य मदिर की पौराणिकता को दशार्ता है । इस स्थान को देवल मुनि के आश्रम के रुप में भी पूरे देश में ख्याति प्राप्त है। इस लिए इस स्थान को देवलास कहा जाता है ।
सूर्य मदिर होने के वजह से यहाँ पर सदियो से सूर्य षष्ठी के दिन भव्य मेले का आयोजन होता है । जो एक सप्ताह तक चलता है । सूर्य षष्ठी पर लगने वाले मेले में देश के कोने कोने से श्रद्वालु आते है, भगवान भाष्कर को नमन कर उनसे आशिर्वाद लेते है । मदिरं में चढाने के रुप में फूल माला बतासा पुडी हलुवा चढाने का विधान है । मदिरं प्रागंण में सूर्य कुण्ड बना हुआ है । मान्यता है कि इस सूर्य कुण्ड में स्थान करने से कई बिमारियाँ दूर हो जाती है।
बता दे कि यह सूर्य मदिर जनपद मु्ख्यालय से तीस किमी दूर मोहम्मदाबाद तहसील के देवलास गाव में स्थित है । सूर्य मदिर की महता पूरे देश में प्रचलित है । यह स्थान महिर्षि देवल मुनि की तपोस्थली भी रही है । उन्ही के नाम पर इस स्थान को देवलास के नाम से जाना जाता है । श्रुतियों के अनुसार देवल मुनि ब्रम्हा के पुत्र दक्ष प्रजापति के पुत्र थे जिनकी यह तपोस्थली रही है । तेत्रा युग में अयोध्या के महाराज दशरथ के राज्य का पूर्वी छोर की सिमाए यहाँ लगती थी । और भगवान राम अपने वन गमन के दौरान पहले दिन इसी स्थान पर रुककर विश्राम किए और यही पर सूर्य की उपासना किए थे इसलिस इस मदिर को बालार्क सूर्य मदिर के नाम से जाना जाता है । भगवान राम के वन गमन के दौरान पहले दिन यहाँ रुकने का प्रमाण बालमिकी रामायण से मिलता है , भगवान राम तमसा नदी के किनारे के अपने पहले पडाव पर रुके। हालाकि श्रुतियो के अनुसार के इस स्थान को पाण्डव युगीन भी कहा जाता है ।
देवलास गाव में स्थित सूर्य मदिरं पर सूर्य षष्ठी के दिन से ही विशाल मेले का आयोजन होता है जो एक सप्ताल तक निरतंर चलता है । देस के कोने से सूर्य के उपासक इस स्थान पर आते है । भगवान भाष्कर की उपासना करते है । एतिहासिक और भौगोलिक दृष्टि से इस स्थान पर एतिहासिक साक्ष्यो को अपने आप में समेटे हुए है । कहते है कि भगवान सूर्य के बाल रुप की यहाँ पर पुजा की जातीहै । चढावे के रुप में नारियल फुल माला बतासा चढाया जाता है । वर्ष भर धार्मिक कार्यक्रमो का आयोजन होता रहता है । मदिर परिसर में प्राचीन पोखरा है जिसे सूर्य कुण्ड के नाम से जाना जाता है । पोखरे का महत्व है कि इस पोखरे में नहाने मात्र से ही कई बिमारियां ठीक होती है । किवदन्ती के अनुसार इस पोखरे मे स्थान करने कुष्ठ रोग, बुखार तक ठीक हो जाता है ।सूर्य षष्ठी के दिन से शुरु होने वाले मेले का आयोजन की तैय्यारी जिलाधिकारी ज्ञान प्रकास त्रिपाठी ने खुद ही फीता काटकर किया है । मदिर में पुजा अर्चना भी किया । जिलाधिकारी ने बताया कि यह स्थान पौराणिक है । इस स्थान को पाण्डवयुगीन भी कहा जाता है । वही भगवान राम का भी जिक्र करते हुए बताते है कि भगवान राम अपने राज्य में भ्रमण के दौरान इस स्थान पर आये हुए होगे और पुजा किए होगे । क्योकि स्थान पुराणो के अनुसार प्राचीन है जिसका पौराणिक महत्व है ।
मंदिर के संरक्षक विजय शंकर पाण्डे बताते है कि मदिरं का बहुत पुराना एतिहासिक महत्व है । इस मदिर के बारे मे अपने पुर्वजो से सुनते चले आ रहे है । धर्म शास्त्र पुराण और श्रुतिओ के अनुसार जो कुछ सुना गया है उसके अनुसार मदिर का प्राचीन महत्व है । इस स्थान पर पाण्डव आये हुए थे । अयोध्या के महाराजा दशरथ का यहाँ पर दसवा फाटक था । भगवान राम नें भी पुजा किया था । जैसा श्रुतियो के माध्यम से पता चलता है । मुगल काल के दौरान मुस्लिम आक्रमणकारियो के द्वारा इस मदिर को भी छति पहुचाया गया होगा । क्योकि मदिर के पिछे विशाल पत्थर की शिला जमीन के अन्दर से दो फुट उपर तक दिखाई पडती है । जिसके बारे मे कहा जा सकता है कि वह किसी पुरानी इमारत का हिस्सा होगा । जिसको मुगल काल में नष्ट किया गया होगा । इसके अलावा मदिर के प्रागंण में जो पोखरा स्थापित है उसकी खुदाई के दौरान तमाम हिन्दू देवी देवताओ की मुर्तियां निकली हुई थी । लेकिन दुर्भाग्य की सुरक्षा के आभाव में उन प्राचीन मूर्तियो को चोर चुरा ले गये । हालाकि सूर्य षष्ठी के दिन लगने वाले प्राचीन मेले में देस के कोने से श्रद्वालु दर्सन करने आते है । इस स्थान पर भगवान भाष्कर के बाल रुप की उपासना किया जाता है । एक सप्ताह तक मेला चलता है ।
सूर्य मदिर पर लगने वाले मेले के बारे में अजय जायसवाल बताते है कि यहां पर जिस मेले का आयोजन किया जाता है वह एक सप्ताह तक चलता है ।
बाइट---ज्ञान प्रकाश त्रिपाठी (जिलाधिकारी मऊ)
बाइट---विजय शंकर पाण्डे ( मंदिर संरक्षक )
बाइट---अजय जायसवाल (मेला आयोजक )