भारत जी-77 और चीन द्वारा दिए गए वक्तव्य से सहमत है और बतौर राष्ट्र निम्नलिखित टिप्पणियाँ करना चाहता है। हम एजेंडा की मद 18 और 19 के अंतर्गत प्रस्तुत रिपोर्टों की सराहना करते हैं।
महासचिव की नवीनतम रिपोर्टें इस बात पर बल देती हैं कि वर्ष 2015 से लेकर अबतक प्रगति तो हुई है, लेकिन वर्ष 2030 तक के लक्ष्य से हम बहुत दूर हैं। सतत विकास लक्ष्यों की प्राप्ति की दिशा में आधी-अधूरी अथवा विपरीत दिशा में प्रगति हुई है। इस संदर्भ में भारत इस बात पर ज़ोर देता है कि सतत विकास लक्ष्य बहुपक्षीय संबंधों के केंद्र में बना रहना चाहिए।
सतत उपभोग और उत्पादन के संबंध में भारत प्रधान मंत्री द्वारा शुरू किए गए मिशन लाइफ (पर्यावरण के लिए जीवनशैली) के परिवर्तनकारी दृष्टिकोण को दोहराता है, जो वैश्विक संधारणीयता के लिए व्यापक योगदान के रूप में व्यष्टि और समष्टि दोनों स्तरों पर पृथ्वी के लिए हितकर विकल्पों के चयन को बढ़ावा देता है।
हम उन लघु द्वीपीय विकासशील देशों के साथ खड़े हैं, जिनकी परेशानियों को उनके लिए एंटीगुआ और बरबुडा एजेंडा में रेखांकित किया गया है। भारत ने रियायती वित्त पोषण, क्षमता निर्माण और भारत-संयुक्त राष्ट्र विकास साझेदारी कोष के माध्यम से लघु द्वीपीय विकासशील देशों के साथ अपनी साझेदारी को मज़बूती प्रदान की है।
आपदा जोखिम को कम करने के संदर्भ में हम सेंडाई फ्रेमवर्क को याद करते हैं और इस बात पर ज़ोर देते हैं कि पूर्व चेतावनी प्रणालियों, जोखिम आधारित योजना और सुदृढ़ बुनियादी ढाँचे को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। भारत का आपदा रोधी अवसंरचना गठबंधन (सीडीआरआई) साझेदारी के लिए एक व्यावहारिक मंच प्रदान करता है।
भारत जलवायु कार्रवाई के संबंध में समता और साझा लेकिन विभेदीकृत दायित्व के सिद्धांत पर ज़ोर देता है और हालाँकि COP29 में अंगीकार किया गया जलवायु के लिए वित्तपोषण हेतु नया सामूहिक परिमाणित लक्ष्य निराशाजनक था, हम अपनी बात दोहराते हैं कि विकसित देशों को अपने ओडीए दायित्वों के अलावा जलवायु संबंधी वित्तपोषण की प्रतिबद्धताओं को लेकर और अधिक उदारता बरतनी चाहिए।
जैव-विविधता सम्मेलन और यूएनसीसीडी के संदर्भ में, भारत कुनमिंग-मॉन्ट्रियल वैश्विक जैव विविधता फ्रेमवर्क को पूरी तरह से लागू करने का आह्वान करता है और स्वयं 2030 तक 26 मिलियन हेक्टेयर बंजर भूमि को उसका मूल स्वरूप प्रदान करने के लिए प्रतिबद्ध है।
सतत पर्वतीय विकास, रेत और धूल भरी आंधियों से निपटने और तटीय क्षेत्र प्रबंधन को मज़बूत करने के संदर्भ में भारत अपनी विकास रणनीति में इन सभी पहलुओं को ध्यान में रखता है, क्योंकि यह उत्तर में हिमालय से लेकर भारतीय प्रायद्वीप के पूर्वी और पश्चिमी तटों और भारत के पश्चिम में शुष्क रेगिस्तान तक विविध प्रकार के पारिस्थितिक तंत्रों का घर है।
अंत में, मद संख्या 19 के अंतर्गत, एक प्रमुख पर्यटन स्थल के रूप में, भारत सांस्कृतिक संरक्षण और स्थानीय लोगों की आजीविका के साथ संरेखित, सतत और उत्तरदायी पर्यटन के ढाँचे के रूप में पर्यटन हेतु वैश्विक आचार संहिता का समर्थन करता है।
भारत 2030 के एजेंडा के वादे को पूरा करने और यह सुनिश्चित करने के लिए कि कोई भी पीछे न छूटे, सभी भागीदारों के साथ मिलकर काम करने के अपने दृढ़ संकल्प को दोहराता है।