उन तेरह परिवारों के लिए उम्मीद की किरण बनकर निकले एसपी घुले दिखा पुलिस का मानवीय चेहरा मऊ।फर्जी पासपोर्ट कांड में "बलि का बकरा" बने नौ महीने जेल में रहकर तबाह हुए उन तेरह परिवारों की जिंदगी में आज एक नया सबेरा हुआ,जब नवागत एसपी सुशील घुले उनके लिए उम्मीद की एक किरण बनकर सामने आये ।जिस प्रकरण की सीबीआई जांच कराने की मांग को लेकर "आज" हिन्दी दैनिक के ब्यूरोचीफ एवं मान्यता प्राप्त पत्रकार असोसिएशन जनपद मऊ के अध्यक्ष ऋषिकेश पाण्डेय ने दो अक्टूबर को विधान सभा लखनऊ के सामने आत्मदाह करने की घोषणा की थी।जो इस मामले को कांग्रेस एमएलसी दीपक कुमार सिंह द्वारा विधान परिषद में उठाने के बाद भी जांच नहीं कराये जाने से क्षुब्ध थे।पत्रकार और पुलिस अधीक्षक के बीच करीब डेढ़ घंटे तक चली लम्बी बातचीत में एसपी ने बङे गौर से इस प्रकरण की सच्चाई सुनी और केस डायरी को अवलोकनार्थ मंगाने का निर्देश दिया है।जिससे फिलहाल आत्मदाह का कार्यक्रम स्थगित कर दिया गया है ।बता दे कि भ्रष्टाचार मिटाने के लिए नहीं बल्कि एलआईयू में प्रतिमाह लाखों रूपये की अवैध धन उगाही के विवाद के बाद दर्ज कराये गये एफआईआर में उन तेरह बेगुनाह परिवारों को गुनहगार बना दिया । जो गुनाह उन्होंने किया ही नहीं।जैसा कि एफआईआर के नौ माह बाद भी पुलिस अभी तक एक भी फर्जी पासपोर्ट बरामद नहीं कर सकी है।जिससे यह साबित होता है कि उन लोगों ने या तो कोई गुनाह किया ही नहीं है या फिर उस अपराध में उनका अंश मात्र भूमिका रही है।जबकि असली "सरदारों" को कार्रवाई की जद में ही नहीं लाया गया।ऐसी स्थिति में तेरह परिवारों को आगे की तबाही से बचाने के लिए या तो इस एफआईआर को वापस लिया जाना चाहिए या फिर इसकी सीबीआई जांच करायी जानी चाहिए।ताकि फर्जी पासपोर्ट कांड की असली सच्चाई सबके सामने आ सके।पुलिस अधीक्षक सुशील घुले से मिले आश्वासन से उन परिवारों को न्याय मिलने की दिशा में एक रोशनी दिखी है।अगर,ऐसा हुआ तो नवागत एसपी सुशील घुले पुलिस के उस प्राचीन स्वरूप को जिसे देखकर लोग पुलिस से घृणा करने लगते थे,उसे अतीत की काल कोठरी में धकेलकर पुलिस के उस स्वरूप को आम जनता के सामने लाने में सफल होंगे।जिसकी कल्पना माननीय मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ एवं पुलिस महानिदेशक हितेश चंद्र अवस्थी ने की है।

