घोसी --आस्था का केंद्र है सीताकुंड, यहाँ मुरादें होती है पुरी


घोसी --सीताकुंड एक पौराणिक कुंड है जिसे राजा नहुष ने खोदवाया था बताते चलें कि घोसी पहले नहुष नगर था जो राजा नहुष की नगरी थी लेकिन अब बिगड़ते बिगड़ते इसका नाम घोसी हो गया, राजा नहुष को श्राप था कि अगर 365 तालाब खोदवा कर सबसे अंतिम वाली पोखरी में स्नान करेंगे तो आपका कोढ़ समाप्त हो जाएगा तो राजा नहुष ने पोखरिया खनवाना शुरू कर दिया और सबसे अंतिम पोखरी सीताकुंड थी जिसमें राजा नहुष स्नान किये तब उनका कोढ़ एकदम से समाप्त हो गया घोसी संघर्ष समिति घोसी के अध्यक्ष अरविंद कुमार पांडेय ने बताया कि आज भी पोखरी के बीच में गर्म पानी रहता है जिसकी पुष्टि कई साल पहले पोखरी सफाई के दौरान मल्लाहों ने किया था, बताते चलें कि राजा नहुष के बाद वनगमन को जाते समय माता सीता ने इसी पोखरी में स्नान किया था तभी से इसका नाम सीताकुंड हो गया, सीताकुंड अपने आप में न जाने कितने राज छुपा करके रखा है, सीताकुंड में स्नान करने के बाद माता शीतला एवं मां काली जी का दर्शन की, क्योंकि सीताकुंड पर ही मां शीतला एवं मां काली का मंदिर स्थित है जो कि अति प्राचीन है जहां पर दर्शन करने से सबकी मुराद पूरी हो जाती है ,प्रत्येक रविवार एवं मंगलवार को दाद, खाज, खुजली होने वाले का तांता लगा रहता है एवं बहुत दूर दूर से लोग आते हैं आज भी जब घोसी संघर्ष समिति घोसी के अध्यक्ष अरविंद कुमार पांडेय की नजर सीताकुंड पर पड़ी तो पचासों की संख्या में लोग स्नान कर रहे थे और कोई मऊ से आया था तो कोई जौनपुर से आया था इसी तरह दूर-दूर से लोग आते हैं और नहाते हैं और मां शीतला एवं मां काली के दर्शन करते हैं ,लेकिन इस सीताकुंड अपने सुंदरीकरण का इन्तेजार कर रही है देखा जा रहा है कि प्रशासन की नजर इस पर कब पड़ती है 
इस समय पूरा सीताकुंड जलकुंभी से भरा पड़ा है अपने सफाई के इंतज़ार में जब बारिश बंद हो जाएगी तब घोसी संघर्ष समिति घोसी के अध्यक्ष अरविंद कुमार पांडेय इसके सफाई की व्यवस्था करने के लिए कहे हैं ।