जाने माने समाजसेवी ,व्यवसायी, काशीनाथ कपूर उर्फ काशी बाबू का महाप्रयाण
, नहीं रहे
मऊ-- सामाजिक सरोकारों के प्रति समर्पित सूत व्यवसायी काशीनाथ कपूर (86) के महाप्रयाण की खबर से जनपद मऊ सहित मऊ नगर में शोक की लहर है।
वृहस्पतिवार की सुबह अचानक काशी बाबू की तबियत खराब होने पर परिजन आनन-फानन में अस्पताल ले जा रहे थे की रास्ते में ही उनको हार्ट अटैक आ गया। अस्पताल पंहुचने से पहले ही उनकी मृत्यु हो गयी।
उनके निधन का समाचार सुनते ही व्यवसायी, बुनकर, सामाजिक कार्यकर्ता, राजनैतिक दलों के लोग, बैंक कर्मी आदि ने संवेदना व्यक्त करते हुए गतात्मा के प्रति श्रंद्धाजलि अर्पित किया।
अपने शोक संदेश में लोगों ने कहा कि काशी बाबू का निधन महामानव का महाप्रयाण है।
लोगों ने कहा कि सदैव गौमाता के प्रति कार्य करने वाले काशी बाबू का गौशाला के प्रति योगदान अविस्मरणीय है। दयानन्द बाल विद्या मंदिर के प्रबंधक अशोक आर्य ने बताया कि 06 दिन पहले हुई मुलाकात में काशी बाबू ने गौशाला और गौमाता के प्रति अपनी भावना प्रकट करते हुए क्या करना चाहते हैं इन गतिविधियों पर चर्चा किया ।
अशोक आर्य ने बताया कि उम्र के इस पड़ाव पर काशी बाबू की यह सोच किसी महामानव के बस की ही बात है।
इसके अलावा काशी बाबू ने हिंदी मातृभाषा के लिए अपना संपूर्ण जीवन समर्पित कर दिया। मृदु स्वभाव के धनी काशीनाथ कपूर अखिल भारतीय उद्योग व्यापार मंडल के वरिष्ठ संरक्षक तथा गोपाल गौशाला व हिंदी साहित्य परिषद के संस्थापक सदस्य रहे हैं। गौ संरक्षण के लिए वे किसी के सामने भी हाथ फैलाकर सहयोग मांगने में कोई कोताही नहीं करते थे।
उम्र के इस पड़ाव पर काशी बाबू अपने को व्यस्त करने के लिए नित्य राम नाम कापियों पर लिख कर राम नाम बैंक में जमा करते थे। उन्हें सूत व्यवसाय के साथ-साथ साड़ी व लूंगी के कैलेंडर के लिए मऊ, खलीलाबाद, जलालपुर, बाराबंकी आदि जनपदों में कैलेंडर व्यवसाय का जनक
बताया जाता है।
उनके निधन से समग्र व्यापारी समाज व जनसाधारण तथा यार्न / सूत व्यापारी, बुनकर काफी व्यथित व शोकाकुल हैं। उनका अंतिम संस्कार तमसा तट स्थित ढेकुलिया घाट पर आर्य समाज के वैदिक रीति द्वारा किया गया।
वे अपने पीछे नीरज कपूर व पंकज कपूर दो पुत्रों सहित भरा पूरा परिवार छोड़ गये हैं।
, नहीं रहेमऊ-- सामाजिक सरोकारों के प्रति समर्पित सूत व्यवसायी काशीनाथ कपूर (86) के महाप्रयाण की खबर से जनपद मऊ सहित मऊ नगर में शोक की लहर है।
वृहस्पतिवार की सुबह अचानक काशी बाबू की तबियत खराब होने पर परिजन आनन-फानन में अस्पताल ले जा रहे थे की रास्ते में ही उनको हार्ट अटैक आ गया। अस्पताल पंहुचने से पहले ही उनकी मृत्यु हो गयी।
उनके निधन का समाचार सुनते ही व्यवसायी, बुनकर, सामाजिक कार्यकर्ता, राजनैतिक दलों के लोग, बैंक कर्मी आदि ने संवेदना व्यक्त करते हुए गतात्मा के प्रति श्रंद्धाजलि अर्पित किया।
अपने शोक संदेश में लोगों ने कहा कि काशी बाबू का निधन महामानव का महाप्रयाण है।
लोगों ने कहा कि सदैव गौमाता के प्रति कार्य करने वाले काशी बाबू का गौशाला के प्रति योगदान अविस्मरणीय है। दयानन्द बाल विद्या मंदिर के प्रबंधक अशोक आर्य ने बताया कि 06 दिन पहले हुई मुलाकात में काशी बाबू ने गौशाला और गौमाता के प्रति अपनी भावना प्रकट करते हुए क्या करना चाहते हैं इन गतिविधियों पर चर्चा किया ।
अशोक आर्य ने बताया कि उम्र के इस पड़ाव पर काशी बाबू की यह सोच किसी महामानव के बस की ही बात है।
इसके अलावा काशी बाबू ने हिंदी मातृभाषा के लिए अपना संपूर्ण जीवन समर्पित कर दिया। मृदु स्वभाव के धनी काशीनाथ कपूर अखिल भारतीय उद्योग व्यापार मंडल के वरिष्ठ संरक्षक तथा गोपाल गौशाला व हिंदी साहित्य परिषद के संस्थापक सदस्य रहे हैं। गौ संरक्षण के लिए वे किसी के सामने भी हाथ फैलाकर सहयोग मांगने में कोई कोताही नहीं करते थे।
उम्र के इस पड़ाव पर काशी बाबू अपने को व्यस्त करने के लिए नित्य राम नाम कापियों पर लिख कर राम नाम बैंक में जमा करते थे। उन्हें सूत व्यवसाय के साथ-साथ साड़ी व लूंगी के कैलेंडर के लिए मऊ, खलीलाबाद, जलालपुर, बाराबंकी आदि जनपदों में कैलेंडर व्यवसाय का जनक
बताया जाता है।
उनके निधन से समग्र व्यापारी समाज व जनसाधारण तथा यार्न / सूत व्यापारी, बुनकर काफी व्यथित व शोकाकुल हैं। उनका अंतिम संस्कार तमसा तट स्थित ढेकुलिया घाट पर आर्य समाज के वैदिक रीति द्वारा किया गया।
वे अपने पीछे नीरज कपूर व पंकज कपूर दो पुत्रों सहित भरा पूरा परिवार छोड़ गये हैं।

